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Friday, May 28, 2010
केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश सरकार के बीच बढ़ा टकराव
सत्ता का ‘स्वर्णिम’ सत्र
Saturday, May 8, 2010
भाजपा में सु 'प्रभात'
भोपाल। प्रदेश भाजपा मुखिया की कुर्सी प्रभात झा सम्हालने वाले है। इस खबर से पार्टी समर्थक और कार्यकताओं में खुशी की लहर है। आखिरकार प्रदेश भाजपा में सुप्रभात होने जा रहा है।लंबे विचार-विमर्श के बाद अन्तत: मप्र भाजपाध्यक्ष के लिए प्रभात झा का नाम तय हो ही गया है। भाजपा मुख्यालय सूत्रों की माने तो चुनाव पर्यवेक्षक एवं पार्टी के उपाध्यक्ष कलराज मिश्र 8 मई को भोपाल आ रहे है और वह उसी दिन प्रदेश भाजपा मुखिया के पद पर प्रभात झा के ताजपोशी की घोषणा करेंगे। प्रभात झा मप्र. भाजपा के पहले ऐसे अध्यक्ष होंगे जिनका जन्म मप्र. में न होकर बिहार में हुआ है। श्री झा का अध्यक्ष बनना कई मायनों में ऐतिहासिक है। सिर्फ इसलिये नहीं कि वे जन्म से बिहार के है बल्कि इसलिये भी कि उनके सामने बहुत ताकतवर विकल्प मौजूद थे। वह चाहे इंदौर से लगातार चुनाव जीतती आ रही 'ताईÓ सुमित्रा महाजन हो या फिर भाजपा के नवनियुक्ति महासचिव व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल रहे नरेन्द्र सिंह तोमर की पंसद राज्य सभा सदस्य माया सिंह ही क्यों न हो। वही दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भाजपा में उमा भारती के वापसी के चल रहे प्रयासों के तहत बुरी तरह खौफजदा थे और इसी के चलते उन्होंने राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी। वे चाहते थे कि संगठन की बागडौर उनके किसी आदमी को ही सौपी जाये। फलस्वरूप उन्होंने भी प्रभात झा को अध्यक्ष की कुर्सी से दूर रखने के लिये ऐड़ी -चोटी का जोर लगा दिया लेकिन जब शीर्ष पार्टी नेतृत्व द्वारा शिवराज सिंह चौहान को भरोसा दिलाया गया कि प्रभात झा के अध्यक्ष बनने से प्रदेश में संगठन को काफी लाभ पहुंचेगा तब श्री चौहान ने अपनी सहमति जताई। वही संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी ने भी प्रभात झा का साथ दिया। इसके साथ ही श्री झा की पार्टी में सक्रियता, बेदाग छवि और दिल्ली के आला नेताओं में गहरी पैठ ने भी उन्हें प्रदेश भाजपाध्यक्ष की कुर्सी के निकट पहुंचाने ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उल्लेखनीय है कि राजमाता सिंधिया के गृह जिले ग्वालियर में प्रभात झा द्वारा मूल स्वदेश अखबार में काम करने के दौरान ही संघ की रीतियों-नीतियों से प्रभावित होकर वे बरास्ता संघ भाजपा में सक्रिय भूमिका में आये। इसके बाद उनकी कर्मभूमि चंबल से हटकर राजधानी भोपाल हो गई, जहां वे संवाद और संपर्क प्रमुख के बतौर काम करने लगे राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने के उपरान्त उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सचिव बना दिया गया। प्रभात झा को मप्र. से राज्य सभा में भेजा गया है। सूत्रों का कहना है कि 8 मई को अपने नाम की औपचारिक घोषणा के बाद वे किसी भी दिन अपना कार्यभार ग्रहण कर लेंगे।
लंबे विचार-विमर्श के बाद अन्तत: मप्र भाजपाध्यक्ष के लिए प्रभात झा का नाम तय हो ही गया है। भाजपा मुख्यालय सूत्रों की माने तो चुनाव पर्यवेक्षक एवं पार्टी के उपाध्यक्ष कलराज मिश्र 8 मई को भोपाल आ रहे है और वह उसी दिन प्रदेश भाजपा मुखिया के पद पर प्रभात झा के ताजपोशी की घोषणा करेंगे। प्रभात झा मप्र. भाजपा के पहले ऐसे अध्यक्ष होंगे जिनका जन्म मप्र. में न होकर बिहार में हुआ है। श्री झा का अध्यक्ष बनना कई मायनों में ऐतिहासिक है। सिर्फ इसलिये नहीं कि वे जन्म से बिहार के है बल्कि इसलिये भी कि उनके सामने बहुत ताकतवर विकल्प मौजूद थे। वह चाहे इंदौर से लगातार चुनाव जीतती आ रही 'ताईÓ सुमित्रा महाजन हो या फिर भाजपा के नवनियुक्ति महासचिव व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल रहे नरेन्द्र सिंह तोमर की पंसद राज्य सभा सदस्य माया सिंह ही क्यों न हो। वही दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भाजपा में उमा भारती के वापसी के चल रहे प्रयासों के तहत बुरी तरह खौफजदा थे और इसी के चलते उन्होंने राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी। वे चाहते थे कि संगठन की बागडौर उनके किसी आदमी को ही सौपी जाये। फलस्वरूप उन्होंने भी प्रभात झा को अध्यक्ष की कुर्सी से दूर रखने के लिये ऐड़ी -चोटी का जोर लगा दिया लेकिन जब शीर्ष पार्टी नेतृत्व द्वारा शिवराज सिंह चौहान को भरोसा दिलाया गया कि प्रभात झा के अध्यक्ष बनने से प्रदेश में संगठन को काफी लाभ पहुंचेगा तब श्री चौहान ने अपनी सहमति जताई। वही संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी ने भी प्रभात झा का साथ दिया। इसके साथ ही श्री झा की पार्टी में सक्रियता, बेदाग छवि और दिल्ली के आला नेताओं में गहरी पैठ ने भी उन्हें प्रदेश भाजपाध्यक्ष की कुर्सी के निकट पहुंचाने ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उल्लेखनीय है कि राजमाता सिंधिया के गृह जिले ग्वालियर में प्रभात झा द्वारा मूल स्वदेश अखबार में काम करने के दौरान ही संघ की रीतियों-नीतियों से प्रभावित होकर वे बरास्ता संघ भाजपा में सक्रिय भूमिका में आये। इसके बाद उनकी कर्मभूमि चंबल से हटकर राजधानी भोपाल हो गई, जहां वे संवाद और संपर्क प्रमुख के बतौर काम करने लगे राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने के उपरान्त उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सचिव बना दिया गया। प्रभात झा को मप्र. से राज्य सभा में भेजा गया है। सूत्रों का कहना है कि 8 मई को अपने नाम की औपचारिक घोषणा के बाद वे किसी भी दिन अपना कार्यभार ग्रहण कर लेंगे।
भोपाल । जमीन घोटाले के आरोपों में फंसे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों में इस बात को लेकर बेहद नाराजगी है कि इस लड़ाई में उन्हीं की पार्टी भाजपा ने विजयवर्गीय के बचाव में कुछ नहीं किया है। उधर, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वयोवृद्ध कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री सुरेश सेठ द्वारा की गई घेराबंदी को देख भाजपा भी घबरा उठी है। उसे लग रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय और उनके प्रिय साथी रमेश मेंदोला के खिलाफ लगे आरोपों से भाजपा और प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। सूत्रों का कहना है कि कभी मध्यप्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखे जाते रहे कैलाश विजयवर्गीय को पद से इस्तीफा देने के आदेश भाजपा नेतृत्व दे सकता है। इस लड़ाई में विजयवर्गीय ओर मेंदोला अलग-थलग से पड़ गए हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में सागर गए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सच जल्द ही सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा कि इंदौर में कथित भूमि घोटाले को लेकर छप रही खबरों से वह विचलित नहीं है। आरोप है कि तत्कालीन इंदौर महापौर तथा वर्तमान में प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने वर्ष २००४ में लगभग १०० करोड़ रूपये मूल्य का प्लाट रमेश मेंदोला की अगुआई वाली एक सहकारी समिति को दिये जाने की इजाजत दी थी। मेंदोला ने डीड अपने नाम करवा कर भूमि उपयोग शर्तों को बदलते हुए उसमें २२ अपार्टमेंट्स खड़े कर दिये। गत ६ अप्रैल को एक स्थानीय अदालत ने की गई अनियमितताओं के आरोपों की जांच करने के लिए लोकायुक्त से कहा। इस बीच इंदौर के महापौर कृष्ण मुरारी मोघे ने कहा है उपर्युक्त प्लाट की लीज रद्द करने का कदम राज्य सरकार से निर्देश मिलने पर ही उठाया जा सकता है। इस बीच खबर मिली है कि दिल्ली में राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल, प्रदेश भाजपा संगठन महामंत्री माखनसिंह, सहसंगठन मंत्री भगवतशरण माथुर एवं अरविंद मेनन के बीच लंबे दौर के मंत्रणा होने की खबर है। बैठक में विजयवर्गीय के एक के बाद एक उजागर हुए घपलों के बाद बने हालातों पर गंभीर चिंतन हुआ। बैठक के बीच ही एक बार प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तेजी से विजयवर्गीय के इस्तीफे की खबर चली। दिल्ली-भोपाल फोन घनघनाए गए। खबर लिखे जाने तक बड़े नेताओं के बीच चर्चा का दौर जारी थी।
Friday, April 30, 2010
कभी भी मांगा जा सकता है इस्तीफा कैलाश विजयवर्गीय से
भोपाल । जमीन घोटाले के आरोपों में फंसे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों में इस बात को लेकर बेहद नाराजगी है कि इस लड़ाई में उन्हीं की पार्टी भाजपा ने विजयवर्गीय के बचाव में कुछ नहीं किया है। उधर, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वयोवृद्ध कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री सुरेश सेठ द्वारा की गई घेराबंदी को देख भाजपा भी घबरा उठी है। उसे लग रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय और उनके प्रिय साथी रमेश मेंदोला के खिलाफ लगे आरोपों से भाजपा और प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। सूत्रों का कहना है कि कभी मध्यप्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखे जाते रहे कैलाश विजयवर्गीय को पद से इस्तीफा देने के आदेश भाजपा नेतृत्व दे सकता है। इस लड़ाई में विजयवर्गीय ओर मेंदोला अलग-थलग से पड़ गए हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में सागर गए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सच जल्द ही सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा कि इंदौर में कथित भूमि घोटाले को लेकर छप रही खबरों से वह विचलित नहीं है। आरोप है कि तत्कालीन इंदौर महापौर तथा वर्तमान में प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने वर्ष २००४ में लगभग १०० करोड़ रूपये मूल्य का प्लाट रमेश मेंदोला की अगुआई वाली एक सहकारी समिति को दिये जाने की इजाजत दी थी। मेंदोला ने डीड अपने नाम करवा कर भूमि उपयोग शर्तों को बदलते हुए उसमें २२ अपार्टमेंट्स खड़े कर दिये। गत ६ अप्रैल को एक स्थानीय अदालत ने की गई अनियमितताओं के आरोपों की जांच करने के लिए लोकायुक्त से कहा। इस बीच इंदौर के महापौर कृष्ण मुरारी मोघे ने कहा है उपर्युक्त प्लाट की लीज रद्द करने का कदम राज्य सरकार से निर्देश मिलने पर ही उठाया जा सकता है। इस बीच खबर मिली है कि दिल्ली में राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल, प्रदेश भाजपा संगठन महामंत्री माखनसिंह, सहसंगठन मंत्री भगवतशरण माथुर एवं अरविंद मेनन के बीच लंबे दौर के मंत्रणा होने की खबर है। बैठक में विजयवर्गीय के एक के बाद एक उजागर हुए घपलों के बाद बने हालातों पर गंभीर चिंतन हुआ। बैठक के बीच ही एक बार प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तेजी से विजयवर्गीय के इस्तीफे की खबर चली। दिल्ली-भोपाल फोन घनघनाए गए। खबर लिखे जाने तक बड़े नेताओं के बीच चर्चा का दौर जारी थी।
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